Tuesday 2 July 2013

राहत पर राजनीति

एक तरफ उत्तराखंड में त्रासदी झेल रहे लोगों के लिए पूरे देश भर से मदद के हाथ उठ रहे है,हर कोई अपनी शक्ति अनुसार सहायता में लगा है,,,,पर ऐसे दुखद और त्रासदीपूर्ण मौके पर भी हमारे देश के  भविष्य निर्माण करने का दावा करने वाले नेतागण गन्दी राजनीति करने और एक दूसरे पर कीचड़ उछालने से बाज नहीं आ रहे हैं।
क्या ऐसे समय में इनका ये रवैया शोभनीय है?
बचाव व राहत कार्यों का श्रेय लेने के लिए ये मारामारी करने तक को उतारू हो गये हैं । हद तो तब हो जाती है जब ये राहत सामग्री के थैलों में अपनी पार्टी का प्रचार पत्र डालकर भेज रहे हैं ।
कितने शर्म की बात है कि इन नेताओं को पीड़ित लोगों की मदद से पहले अपना वोट बैंक याद आता है ।
सच में अब इस देश का, देश की राजनीति का, साथ ही साथ यहाँ के निवासियों का भविष्य खतरे में नज़र आ रहा है। 
कई नेताओं और उनकी पार्टियों ने इस आपदा में तबाह हुए केदारनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की घोषणा तो कर दी,पर इस प्रलय ने जिन लोगों का सबकुछ उनसे छीन लिया,उन्हें बेसहारा करके सड़कों पर ला दिया,जो लोग आज दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं,उनकी याद किसी भी राजनीतिक पार्टी को नहीं आ रही।
अरे जब भगवान को पूजने वाला इंसान खुद दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होगा फिर उसका विश्वास अपने भगवान से भी उठ जायेगा।
अगर इतनी ही फिक्र है उन लोगों की तो बस उनके भूखे पेट में एक रोटी देने की कोशिश करो,,,,,इससे ज्यादा उम्मीद आपलोगों से करना आम जनता के लिए बेमानी है।




vkmail93@blogspot.com

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