Saturday 8 March 2014

सवाल सोच का है....

आज अख़बार के गुलाबी हुए पहले पन्ने से महिला दिवस की सूचना मिली वरना वैलेंटाइन डे के बाद ये विशेष गुलाबी रंग अख़बारों में शायद ही कभी दिखता है..
एक ओर महिला अधिकारों,सुरक्षा,आरक्षण जैसे मुद्दों पर सिलेब्रेटीओं,बुद्धिजीवियों के लेखों से अख़बार भरा पड़ा था वहीं दूसरी ओर पहले पन्ने से ही महिला अपराधों की सूचि शुरू हो गयी जो अंदर जाकर छेड़छाड़,बलात्कार जैसे घटिया मानसिकता वाले अपराधों पर खत्म हुई !
बाहरी दुनिया के कुछ ज्यादा चिंतक-विचारक लोगों ने जगह-जगह सभा,सेमिनार, संगोष्ठी,रैली निकालकर अपनी जवाबदेही पूरी कर ली,,,पर इन सब के बीच दिमाग में एक सवाल बार-बार उठता है कि क्या कल से सच में कुछ बदलेगा...?
इन अपराधों की ख़बरों में कोई कमी आएगी..?
मुझे लगता है जरुर आएगी मगर तब जब हम परंपराओं,रीती-रिवाजों,भारतीय संस्कृति के इज्जत-मर्यादा के बोझ तले दबी हुई "नारी" को सबसे पहले एक नागरिक समझे जिसे संविधान द्वारा वे सभी अधिकार समान रूप से मिले हैं जिसे समाज के कुछ तथाकथित 'मर्द' अपना जन्मसिद्ध अधिकार या विशेषाधिकार समझते हैं..!
ये सोच अगर नहीं बदली तो फिर चाहे हम कितना भी 'गुलाब गैंग' दिखा ले या फिर आम आदमी पार्टी की तरह "आम औरत पार्टी" ही क्यूँ न बना ले..कुछ ख़ास असर नहीं होने वाला.....