Tuesday 31 October 2017

भारत में मीडिया कानून

भारत में मीडिया कानून/अधिनियमों की सूची (FOR #UGC-NET #NTA-NET )

 



(साभार- https://blog.ipleaders.in/media-law-online-course/)

 

गलाघोंटू प्रेस एक्ट - 1857 ( 1858 तक चला ) ( लार्ड केनिंग )

भारतीय दंड संहिता – 1860

प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण अधिनियम – 1867

राजद्रोह(124 A)-1870

नाट्य प्रदर्शन अधिनियम – 1876 (ड्रमैटिक एक्ट 1876 यानि ‘नाट्य प्रदर्शन अधिनियम 1876’, 16 दिसम्बर 1876 को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के द्वारा लाया गया था। अन्य अधिनियमों के भांति इस अधिनियम में भी दो भाग है। प्रथम भाग में अधिनियम में जो धाराएँ हैं उनकी सूची और दूसरे भाग में धाराओं के अंतर्गत प्रावधान वर्णित है। इस अधिनियम मे कुल 12 धाराएँ हैं।)

वर्नाकुलर प्रेस एक्ट - 1878 ( 1881 तक चला ) ( लार्ड लिटन )

इंडियन टेलीग्राफ एक्ट – 1885

भारतीय डाकघर अधिनियम - 1898 (इस अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत अभद्र या अश्लील सामग्री को डाक से भेजना वर्जित हैइसी प्रकार ऐसी डाक कोजिस पर या जिसके लिफाफे पर अभद्रअश्लीलराजद्रोहात्मक,निन्दात्मकधमकाने वाले या अत्यंत उत्तेजक शब्दचिन्ह या डिजाइन होभेजना भी अवैध हैऐसे समाचार पत्रोंपुस्तकोंपैटर्नया नमूना पैकेटों को डाक तार महापाल द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा उसमें अश्लील या अभद्र सामग्री होने के संदेह पर रोका या खोला जा सकता है तथा उसका निपटान जैसे केंद्र सरकार चाहे वैसे किया जा सकता है)

समाचारपत्र अधिनियम - 1908 (लार्ड कर्जन )

इंडियन प्रेस एक्ट – 1910

सरकारी गोपनीयता अधिनियम – 1923

धार्मिक भावनाओं पर चोट ( धारा 295 A) – 1927

भारतीय प्रेस (आपातकालीन) अधिकार कानून – 1931

प्रतीक एवं नाम ( अनुचित प्रयोग निवारण ) अधिनियम 1950

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951

सिनेमेटोग्राफ एक्ट – 1952

केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड – 1952

दवा एवं चमत्कारिक इलाज अधिनियम – 1954

श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम – 1955

पुरस्कार प्रतिस्पर्धा अधिनियम 1955

कंपनी अधिनियम 1956

समाचारपत्र (मूल्य व पेज) कानून – 1956

समाचारपत्रों के पंजीकरण(केन्‍द्रीय) नि‍यम – 1956

कॉपीराइट एक्ट – 1957

बालक अधिनियम – 1960 (यह अधिनियम बाल अपराधियों के सुधार और अच्छे नागरिक बनाने के उद्देश्य से बनाया गया है धारा 36(1) के अंतर्गत समाचार पत्रों परपत्रिकाओं पर किसी बच्चे के बारे में चल रही जांच के सिलसिले में बच्चे का नामपताउसके स्कूल का नाम या ऐसा विवरण जिससे उसकी पहचान हो सके प्रकाशित करना या उसकी तस्वीर छापना वर्जित है इसके उल्लंघन पर 1000 रूपये तक का जुर्माना हो सकता है)

प्रेस परिषद अधिनियम (प्रथम) – 1965

न्यायालय अवमान अधिनियम – 1971

संसदीय कार्यवाही (प्रकाशन से रोक) अधिनियम- 1977

प्रेस परिषद अधिनियम (द्वितीय) – 1978

महिलाओं की अमर्यादित प्रस्तुति (प्रतिबंधनात्मक) एक्ट – 1986

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम – 1986

प्रसार भारती अधिनियम – 1990

केबल टेलीविजन नेटवर्क (नियमन) अधिनियम – 1995

ट्राई एक्ट – 1997

आई. टी. एक्ट – 2000

सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003

सूचना का अधिकार अधिनियम – 2005

आई.टी. एक्ट (संशोधित) -2008

 

#साभार

§  (Mass Communication in India by Keval J. Kumar)

 

Monday 30 October 2017

भारत में मीडिया समितियां/आयोग (FOR #UGC-NET , #,NTA-NET)


भारत में मीडिया समितियां/आयोग (
FOR #UGC-NET , #,NTA-NET)

 

·     1952- प्रथम प्रेस आयोग- जी.एस. राज्याध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित प्रथम प्रेस आयोग ने प्रेस के लिए आचार संहिताआरएनआई के स्थापनापत्रकारों के वेतन व सेवाशर्तों का निर्धारणअखबारों का पृष्ठ और मूल्य अनुसूची की सिफारिश की।

·     1961 – सान्याल समिति – न्यायालय की अवमानना से संबंधित कानूनों का अध्ययन किया ।

·     1964- चंदा समिति- ए.के. चंदा समिति ने रेडियो और टीवी को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करनेआकाशवाणी व दूरदर्शन को अलग-अलग करने व स्वायत्त बनाने की सिफारिश की।

·     1965- भगवंतम समिति- टीवी के तकनीकी विकास के लिए। समिति ने टीवी के लिए स्वायत्त निगम बनाने और रेडियो टीवी के घनिष्ठ संबंध को बनाए रखने की सिफारिश की।

·     1966, 4 जुलाई - प्रथम प्रेस परिषद का गठनअध्यक्ष- जे. आर. मुधोलकर (16 नवंबर से कामकाज शुरू कर दिया । इसी कारण 16 नवंबर को 'राष्ट्रीय प्रेस दिवसमनाया जाता है )

·     1977, मार्च कुलदीप नैयर समिति- समाचार समितियों का अध्ययन करने के लिए गठन किया गया

·     1977, अगस्त 17 - वर्गीज समिति -1977 में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद सरकार द्वारा आपातकाल में प्रेस की भूमिका पर श्वेत पत्र लाया गया। सरकार ने प्रसारण माध्यमों की स्वायत्ता के लिए इस समिति का गठन किया। समिति ने आकाशभारती ट्रस्ट बनाने की सिफारिश की। 1997 में इसी तर्ज पर आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए स्वायत्त निगम प्रसार भारती बनाया।

·     1978- दूसरा प्रेस आयोग - आपातकाल के बाद जनता पार्टी सरकार ने जस्टिस पी.सी गोस्वामी की अध्यक्षता में आयोग ने काम शुरू किया लेकिन 1980 में इंदिरा गांधी की सरकार बनने के बाद आयोग ने इस्तीफा दे दिया और फिर से इसका पुनर्गठन किया गया। इस बार जस्टिस के.के. मैथ्यू को इसका अध्यक्ष बनाया गया।

·     1978, 29 मई - द्वितीय प्रेस परिषद का गठन  

·     1979- कारंथ समिति - जनता पार्टी सरकार ने सिनेमा उद्योग के लिए नीति बनाने के लिए गठित किया। समिति ने सिनेमा को राज्य  सूची से बाहर कर संघ या समवर्ती सूची में रखनेसिनेकर्मियों की सेवाशर्तों का निर्धारण करने और सेंसरबोर्ड के फैसलों के खिलाफ अपील के लिए स्टैंडिंग ट्रिब्यूनल बनाने की सिफारिश की।

·     1982 - जोशी समिति - दूरदर्शन के सॉफ्टवेयर निर्माण की लिए पीसी जोशी की अध्यक्षता में टास्कफोर्स बनी। समिति ने दूरदर्शन के कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार के साथरेलवे बोर्ड की तर्ज पर सूचना व प्रसारण मंत्रालय पुनर्गठित करने का सुझाव दिया।

·     1990- प्रसार भारती कानून

·     1991- वर्धन समिति- इस समिति का गठन भारत में विदेशी चैनलों के दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के लिए हुआ था .

·     1995 सुप्रीम कोर्ट का फैसला - जस्टिस पी.बी. सावंतएस. मोहन और बी.पी. जीवनरेड्डी की पीठ ने ध्वनि तरंगों को जनता की संपत्ति बताया।

·     1995- राम विलास पासवान समिति- (104 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रीय मीडिया नीति पर आम राय की बात कही)

·     1996- नीतिश सेनगुप्ता समिति - (सुप्रीमकोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए गठन। समिति ने भारतीय रेडियो और टेलीविजन प्राधिकरण बनानेटीवी सेटों पर टैक्स और रेडियो स्टेशन के लिए लाइसेंस लगाने की सिफारिश की।

·     1997- प्रसारण विधेयक (क्रॉस मीडिया ओनरशिपलाइसेंसिंगविदेशी निवेश का अंशनिजी चैनलों के लिए अपलिंकिंग जैसे मसलों पर विचार के लिए गठन)

·     2003- अमित मित्रा समिति -  रेडियो प्रसारण में निजी भागीदारी की समीक्षा के लिए गठन। एफ.एम रेडियो क्षेत्र में नई लाइसेंस प्रणाली और आय में सरकार की 4 फीसद की हिस्सेदारी की सिफारिश की।)

·     2007- प्रसारण नियामक विधेयक (आचार संहिता और विज्ञापन संहिता के गठन का सुझाव )

#साभार

भारत में जनसंचार तथा

https://jannetwadiparty.wordpress.com/2012/12/21/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BF/

 

Sunday 29 October 2017

एक छात्र होने की कीमत...

इस बार भी दीवाली-छठ जैसे त्योहार पे घर नहीं जा पाया । पिछले 6 सालों से यही हो रहा है । छुट्टी, ट्रेन-टिकट जैसी कई परिस्थितियां इसके लिए ज़िम्मेदार हैं । हालाँकि इतने दिनों में मेरे साथ-साथ घरवाले भी दिमागी तौर पर अभ्यस्त हो चुके होंगे कि इस बार भी मैं नहीं आऊंगा, लेकिन दिल के किसी कोने में एक उम्मीद तो लगी ही रहती होगी । इस उम्मीद के बारे में सोचकर ही थोड़ा दुःख होता है, मन उदास होने लगता है । मुझे पता है कि मेरे पढ़ने और रिज़ल्ट को लेकर मम्मी-पापा को (ख़ास तौर पे मम्मी को) जितनी फ़िक्र नहीं होती उससे कहीं ज़्यादा फ़िक्र ऐसे मौकों पे इस बात की रहती है कि दीवाली पे बच्चे का मुंह मीठा हुआ कि नहीं, छठ का प्रसाद किसी दोस्त ने खिलाया कि नहीं, त्योहार पे नए कपड़े लिए या नहीं , और भी बहुत कुछ । घर-दुआर से अलग जी रहे हम जैसे लोग अब साल के सेमेस्टर ब्रेक का इंतज़ार करते रहते हैं ताकि उन दिनों में घर जाकर जो खालीपन पसर रहा होता है, उसे भर सकें । छुट्टियों के उन दिनों में मम्मी-पापा बहुत खुश रहते हैं और उनका प्यार भी थोक भाव में मिलता है । वापसी में वो मुस्कुराते हुए, आशीर्वाद के साथ हमें विदा करते हैं, शायद इसलिए कि उनके आंसू कहीं हमें कमज़ोर न कर दें । क्योंकि अगर वो छलक पड़े तो हम भी तो बरस पड़ेंगे । सेमेस्टर-दर-सेमेस्टर हम रिज़ल्ट के नम्बरों से, ट्रॉफियों और मेडल से और सर्टिफिकेट जैसी बेजान चीजों से उनके लिए ख़ुशी को खरीदने में लगे रहते हैं, इस उम्मीद में कि शायद त्योहार में न होने की मायूसी इनके ज़रिये मुस्कुराहट में बदल जायेगी । हम एक मोर्चे पर कामयाब तो दिखते हैं लेकिन उसी के दूसरे सिरे पे अधूरापन भी मौजूद नज़र आता है ।  एक अच्छा छात्र, एक अच्छा पत्रकार, एक अच्छा नागरिक बनने की प्रक्रिया का हिस्सा होते हुए एक अच्छा बेटा बने रहने की ये जद्दोजहद इस साल भी बदस्तूर जारी है ।