Sunday 18 February 2018

मीडिया स्वामित्व (Media Ownership)/ मीडिया प्रबंधन

मीडिया स्वामित्व (Media Ownership)/ मीडिया प्रबंधन

 

किसी भी समाचार-पत्र के लिए वृहद स्तरीय पूँजी-निवेशआधुनिक तकनीकों व विभिन्न प्रकार की क्षमता व कौशल वाले मानव संसाधनों की आवश्यकता होती है। समस्त संसाधनों को नियंत्रित करने के साथ-साथ नियोजनडिजाइनिंग व उत्पादन आदि को सुचारु रूप से चलाने के लिए हर समाचार-पत्र के पीछे मीडिया प्रबंधन का अपना तंत्र होता है। किसी भी समाचार-पत्र का स्वस्थ्य व निष्पक्ष सम्पादकीय उक्त समाचार-पत्र के प्रबंधन-तंत्र की कार्य-कुशलता व नीतियों पर निर्भर करता है। सामान्यतः सम्पादकीय नीतियाँ और व्यापारिक गतिविधियां प्रबंधन-तंत्र के अनुसार भिन्न होती हैं। हमारे देश में समाचारों की प्रबंधन प्रणाली कई दौड़ से गुजरी है। समाचार-पत्र के मालिकों ने वैश्विक परिवर्तनों के साथ कदम से कदम मिलाते हुए अपनी प्रबंधन तकनीकों व मालिकाना हक़ की पद्धतियों में समय-समय पर परिवर्तन किया है। किसी भी समाचारपत्र की लोकप्रियता /प्रसारउसमें छपे विज्ञापन /राजस्व का सीधा संबंध समाचार-पत्र के स्वामित्व प्रणाली से है।

          समाचार पत्र हो या फिर अन्य कोई संगठनसभी में मुख्य रूप से पाँच प्रकार के स्वामित्व होते हैं-

1.     एकल स्वामित्व

2.     साझेदारी

3.     संयुक्त पूंजी कम्पनी

4.     न्यास या ट्रस्ट

5.     समितियां एवं संस्थाएं

          पूर्व में समाचार पत्र प्रायः एक व्यक्ति द्वारा ही संचालित किया जाता थाक्योंकि उसका स्वरूप इतना विस्तृत नहीं था। पत्रकारिता उस समय मिशन थीछोटे-छोटे पत्र स्थानीय जगहों से निकाले जाते थेउनकी प्रसार संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी। आज के युग में भी किसी भी छोटे पत्र का संचालन एकल स्वामित्व या एक व्यक्ति के द्वारा किया जाता है। किन्तु जीतने भी बड़े समाचार पत्र हैंउनके उद्देश्यों को ध्यान में रखकर उनका संचालन किया जाता है। जब से पत्रकारिता ने प्रोफेशन का रूप धरण किया हैतब से इसके स्वामित्व की बात उठने लगी है।

 

एकल स्वामित्व :-

          एकल स्वामित्व से तात्पर्य हैपूरे संगठन पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार होना या एक ही व्यक्ति के हाथों में समाचार-पत्र के समस्त शेयरों की बागडोर। ऐसे स्वामित्व में प्रबन्धकमुद्रकसंपादक व मालिक एक ही व्यक्ति होता है। सभी निर्णय लेने के लिए वह स्वतंत्र होता हैवह अपनी इच्छानुसार कोई भी नीतियाँ बना सकता हैकिसी अन्य व्यक्ति के समक्ष उसे जवाबदेही नहीं होती है।समाचार-पत्र का स्वामी सार्वजनिक हित पर आधारित इस समाचार-पत्र का एक निजी उद्धम की तरह संचालन करता है। इस संचालन में उसकी सहता के लिए विशेषज्ञों का एक प्रबंध-तंत्र होता है। इस तंत्र के सदस्य अपने-अपने क्षेत्र के कार्यों के कुशल निष्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं और कार्य की प्रगति का ब्यौरा समाचार-पत्र के स्वामी को देते हैं। उदाहरणस्वरूप हमारे देश में हिंदुस्तान टाइम्स के मालिक के॰ के॰ बिड़ला व द टेलीग्राफ के मालिक अविक सरकार हैं।

एकल स्वामित्व के गुण -

1.     एकल स्वामित्व में मालिकमुद्रकप्रकाशक एक ही व्यक्ति होता है।

2.     विभिन्न प्रकार के निर्णयों की उसे स्वतन्त्रता होती है।

3.     उसके लाभ व विकास के लिए वह जी जान से मेहनत करता है।

4.     उसे किसी के समक्ष जवाबदेही नहीं देनी होती है।

5.     अन्य किसी व्यक्ति का उसके ऊपर दबाव नहीं होता है।  

एकल स्वामित्व के दोष -

1.     एक ही व्यक्ति जहां सभी कार्यों को देखता हैवहाँ कार्य ठीक प्रकार से नहीं हो सकता । क्योंकि वह चारों तरफ व्यवस्था नहीं बना सकता है।

2.     कई बार वित्त संबंधी कठिनाई आ जाती हैतो उसे अपने घर से पैसा लगाना पड़ता है।

3.     प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अपने आपको स्थापित करना मुश्किल होता है।

4.     एक ही व्यक्ति पर बहुत ज्यादा उत्तरदायित्व आ जाता है।

5.     मालिक की मृत्यु के बाद उसके संगठन को चलाने में कठिनाई आती है।

 

साझेदारी मीडिया स्वामित्व :-

          दो या दो से अधिक व्यक्तियों के एक साथ मिलकर साझा हित के उद्देश्य से की गई शुरुआत साझेदारी है। विधिक रूप से भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 के अनुसार साझेदारी उन व्यक्तियों का आपसी समझौता है जो कि सामूहिकता के स्वरूप से शुरू किए गए व्यवसाय के मुनाफे को आपस में बाँटना स्वीकृत करते हैं। ऐसी साझेदारी फर्म में व्यक्तियों की संख्या कम-से-कम दोऔर अधिकतम संख्या 20 तक हो सकती है। इस प्रकार की फर्म शुरू करने से पूर्व सहभागिता पत्र में निम्नलिखित तथ्य एवं सूचनाएँ सम्मिलित की जाती है।

1.     व्यवसाय का नाम

2.     कुल जमा पूँजी

3.     स्थान का नाम

4.     साझेदारी के कर्तव्य व अधिकार

5.     मुनाफे का समायोजन

          इसके साथ ही सम्पूर्ण प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद साझेदारी फार्म का पंजीयन फार्म रजिस्ट्रार से करवाया जाता है। द हिन्दू साझेदारी स्वामित्व पर आधारित स्वामित्व प्रणाली का एक उदाहरण है।

साझेदारी स्वामित्व के लाभ :-

1.     फर्म के प्रबंधन में विविध व्यक्तियों के कौशल का लाभ मिलता है।

2.     सम्मिलित राय मशविरे से निर्णय सहज रूप में लिए जा सकते हैं।

3.     एक व्यक्ति में कार्यों का बोझ नहीं रहता है। सभी में कार्यों का विभाजन कर दिया जाता है।

4.     अधिक पूँजी निवेश होने पर कार्य का स्तर बढ़ाया जा सकता है।

5.     दायित्वों का विभाजन अलग-अलग व्यक्तियों की क्षमता के अनुसार होने से कार्य परिणाम भी बेहतर एवं प्रभावी होते हैं।

साझेदारी स्वामित्व प्रणाली की हानियाँ :-

1.     कई बार किन्हीं नीतियों पर साझेदारों की आपस में राय नहीं मिलतीतब विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है।

2.     एक का गलत रवैयादूसरे को प्रभावित करता है।

3.     कुछ साझेदार बिना किसी वजह के समय-समय पर परेशानियाँ खड़ी कर देते हैं। इससे भी कंपनी के विकास कार्यों में बढ़ा उत्पन्न होती है।

4.     अलग-अलग व्यक्तियों की सोच व मानसिकता भिन्न-भिन्न होती है। ऐसे में किसी भी निर्णय व मत के प्रति उनका आकलन भी भिन्न भिन्न होता है। एक ही मुद्दे के बारे में जब भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएँ मिलती है तो अस्थिरता के खतरे उत्पन्न हो जाते हैं।

5.     व्यक्तियों के मन में संप्रभुता की व्यापक चाह होती है। बड़े अवसरों और निर्णय की स्थिति में यह और प्रखर हो जाती है।

 

संयुक्त साझा कम्पनी :-

          संयुक्त साझा कम्पनी एक बड़ा वाणिज्यिक प्रतिष्ठान होता है। भारतीय कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा तीन के अनुसार कंपनियों का पंजीकरण होता हैइसमें अंशधारी का दायित्व सीमित होता है तथा व्यापार का विस्तार पूँजी बढ़ाकर किया जाता है। कम्पनी का स्वरूप अपनी प्रकृति के अनुसार दो प्रकार का होता है :

1.     पब्लिक लिमिटेड

2.     प्राइवेट लिमिटेड

          पब्लिक लिमिटेड कम्पनी में न्यूनतम सात सदस्यों की आवश्यकता होती है। जबकि प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी में दो सदस्यों से लेकर 50 सदस्य तक हो सकते हैं। साथ ही कंपनी के अंशधारकों की वर्ष में एक बार बैठक बुलाई जाती है। प्रमुख भारतीय समाचारपत्रों पर संयुक्त साझा कंपनियों का अधिकार है। उदाहरण स्वरूप इंडियन एक्सप्रेस न्यूज़पेपर्स (प्राइवेट) लिमिटेडबेनेट कोलमैन एण्ड कम्पनी लिमिटेडआनंद बाजार पत्रिका (प्राइवेट) लिमिटेड और पायनियर लिमिटेड इत्यादि।

कम्पनी प्रणाली के लाभ -

1.      वित्त सभी कार्यों की प्राथमिक आवश्यकता होती है और कम्पनी की प्रकृति के अनुरूप इसकी वित्तीय स्थिति मजबूत होती है।

2.      व्यापक परिपेक्ष्य होने से विस्तार की समभावनाएँ होती हैं।

3.      अपरिहार्य परिस्थितियों में स्वामित्व के अनुरूप दूसरे हाथों में दिया जा सकता है।

4.      सभी व्यक्ति कम्पनी के लक्ष्यों व दायित्यों के प्रति साझा ज़िम्मेदारी लेते हैं।

 

कंपनी प्रणाली की कमियाँ -

1.      व्यापक फैलाव होने के कारण प्रक्रिया भी व्यापक होते होती है। अतः कंपनी के व्यावहारिक निर्माण में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

2.      अपने कार्यकारी पहलू और प्रक्रिया के कारण अल्पतंत्रीय प्रबंधन भी देखने को मिलता है।

3.      व्यापक वर्गव्यापक व्यक्ति व व्यापक प्रबंधन के तत्वों के चलते निर्णय की प्रक्रिया बाधित होती है और उसमें महत्वपूर्ण निर्णय लेने में देरी भी हो सकती है।

न्यास या ट्रस्ट :-

          ट्रस्ट ऐसे संस्थान होते हैं जिनका उद्देश्य लाभ-हानी रहित सुनिश्चित कर्तव्यों को पूरा करना होता है। यानिकिसी विशेष उद्देश्य के प्रचार-प्रसार हेतु समाचार-पत्र की संपत्ति समर्पित समाजसेवियों के प्रबंधन के अंतर्गत देने की दृष्टि से ट्रस्ट की स्थापना की जाती है। प्रकाशन से लाभ की आशा न कर सभी ट्रस्टी सेवा-भाव से पत्र के नियमित प्रकाशन पर बल देते हैं। कोलकाता का लोकसेवक और चंडीगढ़ से ट्रिब्यून ट्रस्टों द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं।

समिति या संस्थाएं :-

          सोसाइटी या एसोसिएशन के तहत ये संस्थाएं आती हैं जो सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड हैं और अन्य सामाजिक कार्यों के साथ-साथ समाचार-पत्र का प्रकाशन भी करते हैं। इन संस्थाओं में अध्यक्ष के साथ-साथ कार्यकरिणी के सदस्य भी होते हैंजो समूहिक रूप से निर्णय लेते हैं। ये  संस्था के लक्ष्यों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए समाचार-पत्रों का प्रकाशन करते हैं जिनका उद्देश्य लाभार्जन नहीं होता है।

          इसके अलावा केंद्र व राज्य सरकारों के स्वामित्व वाले समाचार-पत्र /पत्रिकाएँ भी हैं जिनका प्रकाशन विभिन्न मंत्रालय या विभागों द्वारा किया जाता है। जैसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग द्वारा रोजगार समाचारयोजनाआजकल,बालभारतीकुरुक्षेत्र आदि का प्रकाशन किया जाता है।

समाचार-पत्रों का संगठनात्मक ढांचा :-

          एक व्यापारिक प्रतिष्ठान होने के नाते किसी भी समाचार-पत्र के प्रबंध तंत्र का उद्देश्य होता है कुशल व सक्षम कार्यनिष्पादन ताकि प्रतिष्ठान एक अच्छी साख रखने के साथ-साथ अधिकतम मुनाफा भी अर्जित कर सके। कार्यों को कुशल रूप से अंजाम देने के लिए इनका विभागीय बँटवारा किया जाता है। किसी भी माध्यम आकार के समाचार-पत्र में समान्यतः पाँच विभागों द्वारा कार्य सम्पन्न किए जाते हैं।

1.      सम्पादकीय विभाग  

2.      मुद्रण व उत्पादन विभाग

3.      विपणन विभाग

4.      तकनीकी विभाग

5.      कार्मिक विभाग

          स्वामित्व के प्रकार के अनुसार अलग-अलग सांगठनिक ढांचे देखने में आते हैं। एकल स्वामित्व में तो कहीं-कहीं प्रकाशक ही स्वामीसम्पादक और प्रबन्धक होता है। लेकिन आमतौर पर मालिक ही प्रकाशक होता है और उसके अंतर्गत दो प्रमुख विभाग संपादकीय और प्रबंधन कार्य करते हैं। उन्हे हम पत्रकार और गैर-पत्रकार के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं।

प्रैस आयोग और समाचार-पत्रों की स्वामित्व प्रणाली :-

          वर्ष 1978 में गठित द्वितीय प्रैस आयोग द्वारा वर्ष 1982 में दी गई रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण सिफ़ारिश थी समाचार-प्रतरों की स्वामित्व प्रणाली और नियंत्रण को पृथक करने का मुद्दा। प्रैस आयोग के अनुसार भारतीय प्रैस विशेषकर समस्त दैनिक प्रेसों का एक महत्वपूर्ण अंश ऐसे व्यक्तियों के हाथों में हैजिनका अन्य व्यापारिक प्रतिस्थानों से संबंध है। प्रैस आयोग के अनुसार हमारे देश में सार्वजनिक मुद्दों पर जनसामान्य को शिक्षित करने में प्रैस की एक अहम भूमिका होती है। यह एक सरमानया तथ्य है कि किसी भी समाचार-पत्र की स्वामित्व प्रणाली उक्त समाचार-पत्र की नीतियोंशैली व संपादकीय और राजनीतिक झुकाव को परिलक्षित करती है। आयोग के अनुसार जनसामान्य के हित में यह नितांत आवश्यक है कि प्रैस को व्यापारिक हितों या व्यापारिक घरानों वाले स्वामित्व से अलग रखा जाए।

स्वामित्व प्रणाली और पत्रों की वैचारिक स्वतन्त्रता :-

हमारे देश में प्रचलित स्वामित्व प्रणालियों का अनुभव यह बताता है कि एकल स्वामित्व वाले समाचार-पत्रपत्रिकाएँजिनमें कोई एक ही व्यक्ति सर्वेसर्वा होता हैवहाँ संपादकीय स्वतन्त्रता प्रभावित होती है। ऐसे पत्र की संपादकीय नीति भी वहीं होती हैजो स्वामी की। यहाँ तक कि संपादक अलग होने के बावजूद मालिक की इच्छा और नीति ही सर्वेपरि होती है। स्वामी कभी अपने व्यक्तिगत या व्यावसायिक हितों के लिए संपादकों पर दबाव डालते हैं या फिर अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए किसी दल-विशेष की ओर झुक जाते हैं। फर्मसाझेदारीसंयुक्त साझेदारी कंपनियों में भी यहीं बात लागू होती है। केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा निकाले जाने वाले पत्र-पत्रिकाओं में संबन्धित सरकार की आलोचना वाले आलेख भी नहीं छपते हैं। 

 

 साभार -

मीडिया की पाठशाला ब्लॉग-

http://mediakipathshala.blogspot.in/2015/05/blog-post_10.html