आज कुछ कांवड़ियों को बाईक के पीछे बैठ तिरंगा लहराते देखा ।
शायद आज़ादी का जश्न मना रहे थे।
ट्रिपल लोडिंग कर खुलेआम ट्रैफिक रुल की धज्जियां उड़ाने की आज़ादी.....सड़क के बीचोंबीच गाड़ियाँ खड़ी कर कानफोडू संगीत पर झूमने की आज़ादी...सार्वजनिक जगहों पर बीड़ी-सिगरेट-गांजा चिलम फूंकने की आज़ादी....।
सावन का महिना शुरू होते ही शिव जी के भक्त(कांवरिये) पूरी आस्था के साथ उनके देवालयों में जल अर्पित करने जाते हैं। पर यह कैसी आस्था है ??
बचपन से कांवरियों के हाथ में रंग-बिरंगे 'कांवर' को देखता आया हूँ..फिर उन हाथों को 'गोल्फ्स्टीक' और 'हॉकीस्टिक' की जरूरत क्यों आ पड़ी ??
लगभग हर डीटीसी बस स्टॉप पर 'कांवड़ सेवा समिति' बनाकर हजारों-लाखों खर्च करने वाले क्या सावन के बाद भी अपनी इस 'सेवा' भावना को जगाए रखेंगे ??
क्या उनके हर पंडालों पर लगे जल बोर्ड के टैंकर सावन बाद भी बाहरी दिल्ली के लोगों को समय पर मुफ़्त पानी मुहैया करा पाएगा ??
इन पंडालो में जो दिनभर पूरी-सब्ज़ी,दही भल्ले,टिक्की,मैंगो फ्रूटी परोसी जा रही है वो हर दिन रैन बसेरों में सो रहे किसी रिक्शे वाले को भी नसीब होगी ??
इन सभी सवालों के जवाब में शायद सिर्फ निराशा ही हासिल हो । क्योंकि "आस्था" और 'पाखंड',"आज़ादी" और 'मनमानी' का बुनियादी फ़र्क इन्हीं सवालों और उनके संभावित जवाबों में साफ़ नज़र आता है ।
शायद आज़ादी का जश्न मना रहे थे।
ट्रिपल लोडिंग कर खुलेआम ट्रैफिक रुल की धज्जियां उड़ाने की आज़ादी.....सड़क के बीचोंबीच गाड़ियाँ खड़ी कर कानफोडू संगीत पर झूमने की आज़ादी...सार्वजनिक जगहों पर बीड़ी-सिगरेट-गांजा चिलम फूंकने की आज़ादी....।
सावन का महिना शुरू होते ही शिव जी के भक्त(कांवरिये) पूरी आस्था के साथ उनके देवालयों में जल अर्पित करने जाते हैं। पर यह कैसी आस्था है ??
बचपन से कांवरियों के हाथ में रंग-बिरंगे 'कांवर' को देखता आया हूँ..फिर उन हाथों को 'गोल्फ्स्टीक' और 'हॉकीस्टिक' की जरूरत क्यों आ पड़ी ??
लगभग हर डीटीसी बस स्टॉप पर 'कांवड़ सेवा समिति' बनाकर हजारों-लाखों खर्च करने वाले क्या सावन के बाद भी अपनी इस 'सेवा' भावना को जगाए रखेंगे ??
क्या उनके हर पंडालों पर लगे जल बोर्ड के टैंकर सावन बाद भी बाहरी दिल्ली के लोगों को समय पर मुफ़्त पानी मुहैया करा पाएगा ??
इन पंडालो में जो दिनभर पूरी-सब्ज़ी,दही भल्ले,टिक्की,मैंगो फ्रूटी परोसी जा रही है वो हर दिन रैन बसेरों में सो रहे किसी रिक्शे वाले को भी नसीब होगी ??
इन सभी सवालों के जवाब में शायद सिर्फ निराशा ही हासिल हो । क्योंकि "आस्था" और 'पाखंड',"आज़ादी" और 'मनमानी' का बुनियादी फ़र्क इन्हीं सवालों और उनके संभावित जवाबों में साफ़ नज़र आता है ।