पिछले दिनों एक नेता जी ने हमारे देश को "मधुमक्खी के छत्ते " की उपमा दे डाली!
उपमा क्या दे दी ,यहाँ की राजनीति में जैसे रायता फैल गया!
विपक्ष के नेतागण तो ऐसे मौके पे चौके लगाने की तलाश में रहते हैं!
अब बेचारे नेताजी के बचाव में कई दिग्गज मैदान में अपनी-अपनी धोती कस कर कूद पड़े,,और फिर शुरू हो गयी एक दुसरे पर बयानों की नॉनस्टॉप फायरिंग !
किसी ने देश को अपनी माँ की संज्ञा दी,,तो किसी ने हाथी तक कह दिया,,,,!
शायद सब यह भूल गए की देश को बयानबाजों की नहीं,,कुछ कर दिखाने वालों की जरूरत है !
खैर,,कारण जो भी हो,,,,कसूर ना तो उस मधुमक्खी का था,जिसके छत्ते को लेकर इतना बवाल मचा ,,न ही उस हाथी का !
कसूर तो है इस लोकतंत्र के तंदूर पे राजनीतिक कबाब सेंकने वाले इन नेताओं का !
उपमा क्या दे दी ,यहाँ की राजनीति में जैसे रायता फैल गया!
विपक्ष के नेतागण तो ऐसे मौके पे चौके लगाने की तलाश में रहते हैं!
अब बेचारे नेताजी के बचाव में कई दिग्गज मैदान में अपनी-अपनी धोती कस कर कूद पड़े,,और फिर शुरू हो गयी एक दुसरे पर बयानों की नॉनस्टॉप फायरिंग !
किसी ने देश को अपनी माँ की संज्ञा दी,,तो किसी ने हाथी तक कह दिया,,,,!
शायद सब यह भूल गए की देश को बयानबाजों की नहीं,,कुछ कर दिखाने वालों की जरूरत है !
खैर,,कारण जो भी हो,,,,कसूर ना तो उस मधुमक्खी का था,जिसके छत्ते को लेकर इतना बवाल मचा ,,न ही उस हाथी का !
कसूर तो है इस लोकतंत्र के तंदूर पे राजनीतिक कबाब सेंकने वाले इन नेताओं का !
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